शनिवार, 31 अक्तूबर 2009

जीवन में कोई संघर्ष नहीं है। संघर्ष मन में वास करता है।

जीवन में कोई संघर्ष नहीं है। संघर्ष मन में वास करता है।

मन को प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। यद्यपि एक प्रशिक्षित मन व्यक्ति को शिखर तक ले जाने में समर्थ नहीं होता है, यह मार्ग के समस्त व्यवधानों को दूर कर देता है। एक मुक्त मन ईश्वरीय कृपा है।

जब एक साधन ने मन के चेतन भाग को समझ लिया होता है एवं उसके ऊपर नियंत्रण प्राप्त कर लिया होता है तो वह स्वाभाविक रूप से अपने कार्यो को ठीक व कुशलतापूर्वक करता है। अचेतन की तुलना में मन का चेतन भाग बहुत ही छोटा होता है, फिर भी अचेतन एवं चेतन मन के मध्य एक नजदीकी वार्तालाप रहता है।

जीवन के हर पल का आनंद लीजिए एवं इससे विचलित मत होइए। वह जो घटित नहीं होने जा रहा है वह घटित नहीं होगा एवं जो कुछ होने जा रहा है वह होकर ही रहेगा। इसलिए प्रशांति में हलचल नहीं लानी चाहिए। एक मन जो संतुलित एवं प्रशांत है वह असुर की कार्यशाला नहीं हो सकता है।

स्वयं को अपने मन, इसकी वस्तुओं, संवेगों, वाणी एवं कार्यो के साथ कभी भी एकरूप मत कीजिए (कभी भी मन के साथ मत पहचानिए)। कर्ता कार्य से भिन्न होता है। कभी भी अपने कार्यो, विचारों एवं संवेगों के साथ एकरूप मत होइए, अपितु अपनी वास्तविक प्रकृति शाश्वत प्रसन्नता को स्थापित करके जो कि शांति, प्रसन्नता एवं चिरानंद हैं, में रहिए।

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